श्री केदारनाथ धाम : जाने पूरी कहानी और आध्यात्मिक रहस्य | Kedarnath Dham | Krdarnath Yatra | Temple

भारत एक ऐसा देश है जिसके कण-कण में आस्था.. आध्यात्म एवं धर्मविद्यमान है | सर्वधर्म समभाव का अनुपम प्रतीक भारत सम्पूर्ण विश्व मेंअपनी संस्कृति.. इतिहास एवं सभ्यता के लिए प्रसिद्ध है | भारत की इसीअद्भुत संस्कृति एवं धर्म के गौरव की पताका को फहराता मंदिर है – केदारनाथ धाम |

भारत एक ऐसा देश है जिस के कण-कण में आस्था आध्यात्मिक एवं धर्म विद्यमान है। सर्वधर्म समभाव का अनुपम प्रति भारत संपूर्ण विश्व में अपनी संस्कृति इतिहास एवं सभ्यता के लिए प्रसिद्ध है। भारत की किसी अद्भुत संस्कृति एवं धर्म के गौरव की पताका को फहराता मंदिर है। केदारनाथ धाम उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग में स्थित केदारनाथ मंदिर हिमालय की गोद में बच्चा भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। देवों के देव महादेव की महिमा का प्रति केदारनाथ मंदिर है। भोलेनाथ ज्योतिपुंज के रूप में विद्यमान हैं। तीनों सीटों से खिला हुआ केदारनाथ उत्तराखंड में स्थित गंगोत्री यमुनोत्री और बद्रीनाथ के साथ चार प्रमुख धामों में सम्मिलित है। नाक के प्राकृतिक सौंदर्य में मंदाकिनी और सरस्वती नदी के संगम काफी अतुलनीय योगदान है। यहां से आगे रुद्रप्रयाग शक्तिमान होगा की प्रमुख सहायक नदी अलकनंदा में जाती है। 300586 मीटर की ऊंचाई पर राज्य की पर्वत चोटियों की गोद में और मंदाकिनी नदी के तट के पास स्थित केदारनाथ उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है जो केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग गिरिराज हिमालय के केदार नामक सिंह पर स्थित है। उत्तराखंड में स्थित पंच केदार, केदारनाथ, मध्यमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर में प्रथम केदार माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की अत्यंत रोचक कथाएं हैं। माना जाता है कि भगवान विष्णु के अवतार महत्वपूर्ण नर और नारायण ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने प्रार्थना अनुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यही स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर स्थित है। एक अन्य कथा के अनुसार महाभारत में पांडव। अपने ही बंधु बंधुओं के रक्तपात से अत्यधिक दुखी थे और उस पाप से मुक्ति के लिए भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे किंतु भगवान शिव उनसे अत्यंत रिश्ते थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। पांडवों ने भगवान शिव को काशी और उसके पश्चात उत्तराखंड के गुप्तकाशी में खोजा परंतु महादेव केदार पुरिया के शिव जी को खोजते खोजते पांडव यहां भी आ पहुंचे।भगवान शिव ने यह जान महेश का रूप धारण कर लिया और अन्य पशुओं में जा मिले, किंतु भीम के द्वारा उनको पहचानने पर प्रभु धरती में प्रवेश करने लगे। इस पर भीम ने अपनी शक्ति से उनको अंदर जाने से रोक लिया, जिससे उनकी पीठ वाला हिस्सा है। वहां बचा रह गया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति एवं दृढ़ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति प्रिंट के रूप में यहां निवास करते हैं और केदारनाथ में शिवलिंग के स्थान पर कौन है, शीला की पूजा की जाती है जिसके ऊपर ही यह मंदिर है। मंदिर के निर्माण का कोई प्रामाणिक उल्लेख किया था, किंतु कहां जाता है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था। केदारनाथ मंदिर 1 फीट ऊंची वेदिका पर निर्मित है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है जिसके बाहर प्रांगण में पूजनीय नंदी बैल बहन के रूप में विराजमान है। मंदिर को तीन भागों में बांटा जा सकता है। गर्भ ग्रह मध्य भाग सभा मंडल ग्रह के मध्य में भगवान श्री। केदारेश्वर जी का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है। प्राचीन काल में श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के चारों ओर सुंदर कटुए पत्थरों से निर्मित जलेबी बनाई गई थी और इस मंदिर का निर्माण इन्हीं पत्थरों द्वारा किया गया है। मंदिर की छत लकड़ी की बनी हुई है जिसके शिखर पर स्वर्ण कलश स्थापित है। श्रावण मास में यहां दर्शन हेतु कावड़ियों का तांता लगा रहता है। महादेव के दर्शन अभिलाषी भक्तों के लिए मंदिर के कपाट प्रातः 6:00 बजे से खुल जाते हैं। दोपहर 3:00 से 5:00 तक विशेष पूजा होती है जिसके पश्चात मंदिर कुछ समय के लिए बंद रहता है। चाहे को 5:00 बजे से फिर दर्शन हेतु मंदिर के कपाट खुलते हैं और रात्रि 8:00 बजे आरती के बाद पुनः कपाट सुबह तक के लिए बंद कर दिए जाते हैं। शीतकाल के समय केदारनाथ जी का प्रवास यहां से 7 किलोमीटर दूर उखीमठ में होता है। यहां पर स्थित मंदिर में भगवान शिव की ओमकारेश्वर के रूप में निरंतर पूजा होती है। किंतु केदारेश्वर में ग्रीष्मकालीन प्रवास के छह माह तक उनकी पूजा केदार रूप में होती है। अतः जो श्रद्धालु शीतकाल में केदारनाथ के दर्शन करना चाहते हैं उखीमठ में दर्शन लाभ प्राप्त करते।

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