Shrimad Bhagavata Purana क्यों हैं सबसे श्रेष्ठ। क्या है भागवत के सभी स्कन्दो का रहस्य
पुराणों का उद्देश्य सार गर्भित संवादों की श्रंखला द्वारा सर्व-साधारण जन-जन को वैदिक परंपरा के ज्ञान का सम्प्रेषण है. यह अक्षुण्ण परम्परा , सौंपना और गृहण करना, निर्जीव व्यापार नहीं है अपितु एक तपः साधना है।
Hindu Puranas
पुराण ज्ञान गंगा की श्रंखला में पांचवे पुराण श्रीमद भागवत पुराण का संक्षिप्त परिचय हमारी आज की प्रस्तुति है।
श्रीमद भागवत पुराण 18 पुराणों में पांचवां प्रमुख पुराण है. नारद मुनि की प्रेरणा से महर्षि वेदव्यास जी ने समस्त पुराण, वेदांत, और वेदों में प्रकाश डालने के बाद श्रीमद भागवत पुराण लिखा था. इसमें 12 स्कन्द, 335 अध्याय, और लगभग 18 सहस्त्र श्लोक युक्त हैं।
इस पुराण में सकाम कर्म, निष्काम कर्म, ज्ञान साधना, सिद्धि साधना, भक्ति, अनुग्रह, मर्यादा, निर्गुण-सगुण तथा व्यक्त-अव्यक्त रहस्यों का समन्वय उपलब्ध है. ज्ञान, भक्ति व वैराग्य का यह महान ग्रन्थ है. नैमिषारण्य में शौनकादी ऋषियों की प्रार्थना पर लोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा सूत जी ने इस पुराण के माध्यम से श्री कृष्ण के चौबीस अवतारों की कथा वर्णित की है।
सृष्टि-उत्पत्ति के सन्दर्भ में इस पुराण में कहा गया है- “एकोऽहम्बहुस्यामि” अर्थात एक से बहुत होने की इच्छा के फलस्वरूप भगवान् स्वयं अपनी माया से अपने स्वरुप में काल, धर्म, और स्वभाव को स्वीकार कर लेते हैं. तब काल से तीनों गुणों – सत, रज, और तम में क्षोभ उत्पन्न होता है जिससे कर्म गुण, अहंकार, आकाश, वायु, तेज, जल, पृथ्वी, मन, इन्द्रियां और सत्व में परिवर्तित हो जाते हैं. इस पुराण में काल गणना का अति सूक्ष्म वर्णन है।
इस पुराण के प्रथम स्कंध में उन्नीस (19) अध्याय हैं जिनमें शुकदेव जी ईश्वर भक्ति का माहात्म्य सुनाते हैं। भगवान के विविध अवतारों का वर्णन, देवर्षि नारद के पूर्वजन्मों का चित्रण, राजा परीक्षित के जन्म, कर्म और मोक्ष की कथा, अश्वत्थामा का निन्दनीय कृत्य और उसकी पराजय, भीष्म पितामह का प्राणत्याग, श्रीकृष्ण का द्वारका गमन, विदुर के उपदेश, आदि घटनाओं वर्णन है।
द्वितीय स्कंध का प्रारम्भ भगवान के विराट स्वरूप वर्णन से होता है। इसके पश्चात् गीता का उपदेश, श्रीकृष्ण की महिमा और 'कृष्णार्पणमस्तु' की भावना से की गई भक्ति का उल्लेख है अर्थात जीवात्माओं में 'आत्मा' स्वरूप कृष्ण ही विराजमान हैं।
तृतीय स्कंध उद्धव और विदुर जी की भेंट के साथ प्रारम्भ होता है। इसके अलावा सृष्टि क्रम का उल्लेख, ब्रह्मा की उत्पत्ति, काल विभाजन का वर्णन, सृष्टि-विस्तार का वर्णन, वराह अवतार , सांख्य शास्त्र का उपदेश आदि का वर्णन है. चौथे स्कंध की प्रसिद्धि 'पुरंजनोपाख्यान' के कारण बहुत अधिक है जिसमे भाव यह है कि मनुष्य अपनी इन्द्रियों के उपभोग से निरन्तर भोग-विलास में पड़कर अपने शरीर का क्षय करता रहता है। वृद्धावस्था आने पर शक्ति क्षीण होकर नष्ट हो जाता है। परिजन उसके पार्थिव शरीर को आग की भेंट चढ़ा देते हैं।
पंचम स्कंध में प्रियव्रत, अग्नीध्र, राजा नाभि, ऋषभदेवतथा भरत आदि राजाओं के चरित्रों का वर्णन है। भरत वंश तथा भुवन कोश का वर्णन है. गंगावतरण की कथा, भारत का भौगोलिक वर्णन तथा शिशुमार नामक ज्योतिष चक्र की विधि और विभिन्न प्रकार के रौरव नरकों का वर्णन किया गया है।
षष्ठ स्कंध में नारायण कवच और पुंसवन व्रत विधि का वर्णन है. इसमें दक्ष प्रजापति के वंश का भी वर्णन है. इसमें वत्रासुर राक्षस द्वारा देवताओं की पराजय, दधीचि ऋषि की अस्थियों से वज्र निर्माण तथा वत्रासुर के वध की कथा का वर्णन है।
सप्तम स्कंध में भक्त प्रहलाद की कथा और मानव धर्म, वर्ण धर्म, और स्त्री धर्म का विस्तृत विवेचन है।
अष्टम स्कंध में गजेन्द्र उद्धार की कथा, समुद्र मंथन, मोहिनी रूप, देवासुर संग्राम, वामन अवतार, और मतस्यावतार की कथा का वर्णन है.
नवं स्कंध में 'वंशानुचरित' के अनुसार, इस स्कंध में मनु एवं उनके पाँच पुत्रों के वंश-इक्ष्वाकु वंश,निमि वंश, चंद्र वंश, विश्वामित्र वंश तथा पुरू वंश, भरत वंश, मगध वंश, अनु वंश, द्रह्यु वंश, तुर्वसु वंश और यदु वंश आदि का वर्णन है। इसमें राम-सीता के आदर्शों की व्याख्या भी की गई है।
दशम स्कंध दो खण्डों - 'पूर्वार्द्ध' और 'उत्तरार्द्ध' में विभाजित है। इस स्कंध में श्रीकृष्ण चरित्र विस्तारपूर्वक है। प्रसिद्ध 'रास पंचाध्यायी' भी इसमें प्राप्त होती है। 'पूर्वार्द्ध' के अध्यायों में श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर अक्रूर जी के हस्तिनापुर जाने तक की कथा है। 'उत्तरार्द्ध' में जरासंधसे युद्ध, द्वारकापुरी का निर्माण, रुक्मिणी हरण, श्रीकृष्ण का गृहस्थ धर्म, शिशुपाल वध आदि का वर्णन है। इसमें कृष्ण सुदामा की मैत्री की कथा भी है.
एकादश स्कंध में राजा जनक और नौ योगियों के संवाद का वर्णन है। ब्रह्मवेत्ता दत्तात्रेय महाराज यदु को उपदेश देते हुए कहते हैं कि पृथ्वी से धैर्य, वायु से संतोष और निर्लिप्तता, आकाश से अपरिछिन्नता, जल से शुद्धता, अग्नि से निर्लिप्तता एवं माया, चन्द्रमा से क्षण-भंगुरता, सूर्य से ज्ञान ग्राहकता तथा त्याग की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।
इसमें 18 सिद्धियाँ, वर्णाश्रम धर्म, ज्ञान योग, कर्मयोग और भक्तियोग का वर्णन है।
द्वादश सकन्ध में राजा परीक्षित के बाद के राजवंशों का वर्णन भविष्यकाल में किया गया है. इसमें किस वंश के राजा कितना समय तक राज करेंगे यह वर्णन है.
धार्मिक और आध्यात्मिक कृति के अलावा शुद्ध , साहित्यिक, एवं ऐतिहासिक कृति के रूप में भी यह पुराण अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भारत समन्वय परिवार का प्रयास है की इस पुराण ज्ञान श्रंखला के माध्यम से जनमानस तक पुराणों में निहित ज्ञान और कल्याणकारी संदेशों को प्रेषित करें, और अपनी प्राचीनतम सनातन संस्कृति के संरक्षण में अपना योगदान दें।
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