अमृत वचन

अधिक पढ़ें

प्रवचन

अधिक पढ़ें

गुरुजी की कवितायें

अधिक पढ़ें

धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल

अधिक पढ़ें

हिन्दी साहित्यकार एवम् उनकी रचनाएँ

अधिक पढ़ें

स्वतंत्रता सेनानी

अधिक पढ़ें

मातृ शक्ति

अधिक पढ़ें

आदि ऋषि

अधिक पढ़ें

महान और लोकप्रिय शासक

अधिक पढ़ें

व्रत एवं त्यौहार

अधिक पढ़ें

वेद - पुराण एवं धार्मिक ग्रन्थ

अधिक पढ़ें

महान वैज्ञानिक

अधिक पढ़ें

रोचक तथ्य

अधिक पढ़ें

प्रेरक प्रसंग

अधिक पढ़ें

महान विभूतियाँ

अधिक पढ़ें

सांस्कृतिक प्रतीक

अधिक पढ़ें

राम जन्मभूमि मन्दिर

अधिक पढ़ें

भारत रत्न

अधिक पढ़ें

भारत माता

भारतीय संस्कृति और विरासत

भारत माता: भारतीय संस्कृति, इतिहास, धर्म का दर्पण

सम्पूर्ण विश्व तथा मुख्य रूप से राष्ट्र के भविष्य की निर्माता - युवा शक्ति को भारतीय इतिहास एवं भव्य संस्कृति से परिचित कराने के लिए भारत समन्वय परिवार व भारत माता चैनल पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है। भारतमाता के प्रति अपार श्रद्धा एवं समर्पण के दैदीप्यमान प्रतीक तथा भारतीय धर्मजगत के सशक्त स्तम्भ परम पूजनीय स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज की ओजस्वी वाणी से प्रस्फुटित अमृत वचनों द्वारा जनमानस को प्रेरित करने के लिए भी हम पूर्णतः समर्पित हैं। स्वधर्म एवं सौराष्ट्र का प्रतिष्ठापन करने वाले सरल हृदय एवं तपोनिष्ठ स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज( स्वामी जी महाराज ) का प्रभामंडित स्वर वो प्रेरणादायी स्त्रोत है जिसमें भारत का प्राचीन गौरव महान ऋषियों, संतों, व धर्म गुरुओं की दिव्य वाणी आधुनिक युग के निर्माता स्वामी विवेकानंद तथा स्वामी रामतीर्थ का समन्वित व्यक्तित्व साकार हो गया है। जगत की अमूल्य धरोहर के रूप में प्रतिष्ठापित भारतीय इतिहास एवं संस्कृति तथा परम श्रद्धेय गुरूवाणी को जगत कल्याण के लिए भारत समन्वय परिवार आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर रहा है। भारत समन्वय परिवार सदैव ही भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को जनमानस के ह्रदय रुपी सागर में उदित करने के लिए तत्पर है। अपनी इस भावधारा से हमने कुछ महत्वपूर्ण विषयों को इसमें समाहित किया है,
जिनमें मुख्य हैं –

अधिक पढ़ें
Bharat mata1

संग्रह

भारत भ्रमण

धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल - नीव से लेकर निर्माण तक


भारत समन्वय परिवार पूरे विश्व और विशेषकर राष्ट्र के भविष्य निर्माता युवा शक्ति को भारत के विशाल इतिहास और भव्य संस्कृति से परिचित कराने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

केदारनाथ-भारत माता
केदारनाथ
अधिक पढ़ें
जगन्नाथ-भारत माता
जगन्नाथ
अधिक पढ़ें
स्वर्ण मदिर-भारत माता
स्वर्ण मंदिर
अधिक पढ़ें
आमेर किला-भारत माता
आमेर किला
अधिक पढ़ें

हिन्दू पंचांग

भारत समन्वय परिवार पूरे विश्व और विशेष रूप से राष्ट्र के भविष्य निर्माताओं युवा शक्ति को भारत के विशाल इतिहास और भव्य संस्कृति से परिचित कराने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। हम भारत माता के प्रति अपार भक्ति और समर्पण के उज्ज्वल प्रतीक और भारतीय धार्मिक जगत के एक मजबूत स्तंभ, परम पूज्य स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज की ओजस्वी वाणी से निकले शब्दों से लोगों को प्रेरित करने के लिए भी पूरी तरह से समर्पित हैं।

अधिक पढ़ें
g1

आध्यात्मिक यात्रा

स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज

सनातन परंपरा के संतों में सहज, सरल और तपोनिष्ठ स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का नाम उन संतों में लिया जाता है, जहां से कोई भी पद या पुरस्कार छोटा मिलता है। तन, मन और वचन से परोपकारी संत सत्यमित्रानंद आध्यात्मिक निजी के धनी थे। उनका जन्म 19 सितम्बर 1932 को आगरा के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

स्वामी सत्यमित्रानंद को 29 अप्रैल, 1960 को अक्षय तृतीया के दिन लगभग 26 वर्ष की आयु में भानपुरा पृच्छा का पुरावशेष बनाया गया था। स्वामी सदानंद जी महाराज ने उन्हें संत दिवस दिया। करीब नौ साल तक धर्म और मानव के निमित्त सेवा कार्य करने के बाद उन्होंने 1969 में जिस दंड को धारण करने की क्षमता से ही 'नरो नारायणो भवेत्' का ज्ञान हो गया, उसे गंगा में विसर्जित कर दिया।

स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी (जन्म: 19 सितंबर 1932, मृत्युः 25 जून 2019) एक आध्यात्मिक गुरु थे। धार्मिक-आध्यात्मिक परम्परा का पालन करने वाले स्वामी जी भारत माता को सर्वोच्च मानते थे। इसी श्रद्धा और प्रेम को प्रकट करते हुए उन्होंने हरिद्वार में 108 फीट ऊंचा भारत माता का विशाल मंदिर बनवाया था। जिसका उद्घाटन उद्घाटन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था।

अधिक पढ़ें

स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज

परम पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज आध्यात्मिक गुरु, संत , लेखक और दार्शनिक हैं। स्वामी जी जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर हैं। स्वामी अवधेशानंद गिरि जी ने लगभग दस लाख नागा साधुओं को दीक्षा दी है और वे उनके पहले गुरु हैं। स्वामी जी ने मात्र 17 वर्ष की आयु में सन्यास के लिए घर त्याग दिया था। घर छोड़ने के बाद उनकी भेंट अवधूत प्रकाश महाराज से हुई। स्वामी अवधूत प्रकाश महाराज योग और वेदशास्त्र के विशेषज्ञ थे। स्वामी अवधेशानंद जी ने उनसे वेदांत दर्शन और योग की शिक्षा ली।

गहन अध्ययन और तप के बाद वर्ष 1985 में स्वामी अवधेशानंद जी जब हिमालय की कन्दराओं से बाहर आए तो उनकी भेंट अपने गुरु, पूर्व शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि महाराज से हुई। स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज से उन्होंने सन्यास की दीक्षा ली और अवधेशानंद गिरि के नाम से जूना अखाड़ा में प्रवेश किया।

वर्ष 1998 में हरिद्धार कुम्भ में जूना अखाड़े के सभी संतों ने मिलकर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी को आचार्य महामंडलेश्वर के रूप में प्रतिष्ठित किया। वर्तमान में स्वामी अवधेशानंद गिरि जी प्रतिष्ठित समन्वय सेवा ट्रस्ट हरिद्धार के अध्यक्ष हैं जिसकी भारत और विदेशों में कई शाखाएं हैं। इस ट्रस्ट में विश्व प्रसिद्ध भारत माता मंदिर हरिद्धार सम्मिलित है।

स्वामी अवधेशानंद जी ने जलवायु परिवर्तन, विभिन्न संप्रदायों में भाईचारे के लिए कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की अध्यक्षता की है। स्वामी जी को वेदांत और प्राचीन भारतीय दर्शन विषयों का गहरा ज्ञान है। भारतीय आध्यात्म के शाश्वत संदेशों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करने का स्वामी जी का दिव्य प्रयास सम्पूर्ण देश के लिए गौरव की बात है। आज हम सब उनके लखनऊ आगमन के अवसर पर उनका हार्दिक स्वागत करते हैं और उनके श्रीचरणों में पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। उनकी श्रेष्ठता और पावनता को शत शत नमन।

अधिक पढ़ें
g2